
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में पर्यटकों पर हुए हमले के बाद भारत ने साफ कर दिया है कि पाकिस्तान से निश्चित तौर पर बदला लिया जाएगा। पाकिस्तान को भी लगता है कि भारत भी बड़ा हमला करेगा। सिंधु जल संधि पर रोक लगाकर भारत सरकार द्वारा उठाए गए कठोर कदम से पाकिस्तान भयभीत है और वह कानूनी कार्रवाई करने की तैयारी कर रहा है।
1965, 1971 और 1999 में पाकिस्तान के साथ युद्धों के बाद भी, भारत ने सिंधु जल संधि को निलंबित नहीं किया। पुलवामा और उरी हमलों के बाद भी भारत ने इस संधि को जारी रखा था। लेकिन इस बार पाकिस्तान को करारा जवाब देने की जरूरत है, इसलिए सिंधु जल संधि को तुरंत स्थगित कर दिया गया है। इस कारण पाकिस्तान अब सिंधु जल संधि को निलंबित करने के भारत के कदम पर अंतरराष्ट्रीय कानूनी कार्यवाही शुरू करने की तैयारी कर रहा है और देश की शीर्ष कानूनी संस्था ने इस मामले में सरकार की सहायता के लिए एक समिति भी बनाई है।
पाकिस्तान के कानूनी मामलों के राज्य मंत्री बैरिस्टर अकील मलिक ने रॉयटर्स को बताया, “सरकार कम से कम तीन अलग-अलग कानूनी विकल्पों का उपयोग कर रही है, जिसमें विश्व बैंक के खिलाफ मुद्दा उठाया जाएगा क्योंकि उसने संधि के दौरान मध्यस्थ के रूप में काम किया था।
बैरिस्टर अकील मलिक ने कहा, ‘पाकिस्तान द हेग स्थित स्थायी मध्यस्थता अदालत या अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में भी कार्रवाई करने की योजना बना रहा है। यहां पाकिस्तान यह दलील दे सकता है कि भारत ने संधि को निलंबित करके 1969 के वियना कन्वेंशन का उल्लंघन किया है। इस संबंध में कानूनी रणनीति पर चर्चा लगभग पूरी हो चुकी है, साथ ही किस मामले में मुकदमा चलाना है, इस पर जल्द ही निर्णय लिया जाएगा, और इसमें एक से अधिक विकल्प शामिल होंगे।
सिंधु और उसकी सहायक नदियों को पाकिस्तान की जीवन रेखा कहा जाता है। पाकिस्तान सिंचाई और बिजली उत्पादन के लिए सिंधु नदी के पानी का लगभग 93% उपयोग करता है और देश की लगभग 80% खेती योग्य भूमि सिंधु नदी के पानी पर निर्भर है।
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में कृषि की अहम भूमिका है। इतना ही नहीं पाकिस्तान की लगभग 240 मिलियन आबादी इन नदियों से अपनी पानी की जरूरतों को पूरा करती है। ऐसे में भारत द्वारा समझौते को निलंबित किए जाने के बाद पाकिस्तान के लिए गंभीर समस्या खड़ी हो गई है।